Shri Hit Ashram, Vrindavan, Mathura
!! स्वामी श्री हितदास जी का जीवन परिचय !!
श्री हित राधावल्लभ सम्प्रदाय प्रवर्तक अन्नतश्रीविभूषित
रसिकाचार्य शिरोमणि गो. श्रीहित हरिवंशचन्द्र महाप्रभु की नाद परम्परा के जाज्वल्यमान
नक्षत्र, वृंदावन रजोपसेवी, इष्ट - गो - सन्तसेवी, साम्प्रदायिक सौहार्द
की प्रीतिमूर्ति रसिक अनन्य श्रीहित कृपा मूर्ति परम भागवत स्वामी श्री हितदास जी महाराज
का मंगलमय प्रादुर्भाव मध्य प्रान्तर्गत जिला मण्डला मेकलसुता नर्मदा तटस्थ परमपावन
नारा ग्राम में भारद्वाज गोत्रीय सरयूपारीण ब्राह्मण कुल में विक्रम सं. 1972 कार्तिक
कृष्णा द्वितीया ( सन 1915 ) में हुआ | बाल्याकाल से
ही आप दिव्य गुणगणों से सम्पन्न विलक्षण संस्कारी बालक रहे | आपने अत्यल्प काल मे ही हिंदी वाड्.मय पर पूर्ण अधिकार कर अपनी
अद्भुत प्रतिभा से सबको चमत्कृत कर दिया | आपकी संस्कृत
शिक्षा त्रिपुरी के समीप धवलशैल शिखरों के मध्य नर्मदा के प्रमुख जल प्रपात भेड़ा घाट
पर सम्पन्न हुई। सन् 1936 से 42 तक पिण्डरई में आपने अध्यापन कार्य किया परन्तु पूर्वजन्म
के संस्कार आपको बारम्बार श्रीधाम वृंदावन की ओर आकृष्ट करते रहे | इसी बीच सहसा एक दिन श्रीहित महाप्रभु ने आपको स्वपन में निज
मन्त्र प्रदान कर श्री प्रिया प्रीतम के दर्शन कराये एवं आपके मस्तक पर अपना श्रीचरण
कमल पधराया | इस आकस्मिक अनुकम्पा से अभिभूत हो आप सन्
1942 में अध्यापन कार्य से त्यागपत्र देकर सर्वदा के लिये अपनी निज गृह, निज परिकर में आ मिले | श्रीधाम आगमन के पश्चात् लोकिक गुरु-शिष्य परम्परा के निर्वाह हेतु आपने श्रीहित
महाप्रभु वंशावतंश गो. श्रीहित वृन्दावन वल्लभ जी महाराज से शरणागत एवं कुछ ही समय
पश्चात् स्वनाम धन्य गो. श्री जुगलवल्लभजी महाराज से निजमन्त्र प्राप्त किया |
विरक्त भेष आपने संत शिरोमणि बाबा श्री परमानन्ददास जी महाराज
से ग्रहण किया | सन् 1945 - 48 पर्यन्त आप श्रीहित अचल विहार
की बारह द्वारी में मधुकरीवृत्ति द्वारा जीवन यापन करते हुए निवास किया | सन 1948 से 52 तक आप श्रीहित महाप्रभु की प्राकट्य स्थली श्री
बाद धाम में सेवारत रहे एवं मंदिर का जीर्णोद्धार किया | पश्चात् सन् 1955 में गाँधी-मार्ग स्थित श्री हिताश्रम सत्संग भूमि की संस्थापना
कर सम्प्रदाय को श्रीहितोपासना का एक सुर्द्रढ सुदृढ़ केंद्र प्राप्त कराया |
आपने रसोपासना से सम्बन्धित अनेक संस्कृत एवं ब्रजभाषा के ग्रंथो
की रसपेशल एवं भावपूर्ण टीकाओं का प्रणयन-प्रकाशन कर रसिकों एवं जिज्ञासुओं का अकथनीय
उपकार किया | आपकी स्वचरित कृतियाँ "भाव-मंजरी"
एवं "ह्रदयोद्गार" साहित्य जगत् में अपना विशिष्ट स्थान रखती है |
आप अपनी विलक्षण स्मरण शक्ति, मधुर - मोहिनी प्रवचन शैली एवं वाग्विदग्धता से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते
थे | श्रीमद् राधा सुधानिधि, श्री राधा उप सुधानिधि, श्रीबयालीस लीला एवं
श्री भक्तमालजी के तो आप ह्र्दयस्पर्शी, सरस और मार्मिक
प्रवक्ता रहे | संत एवं वैष्णव समाज ने अपना गौरव मानते हुए
आपको चतु:सम्प्रदाय विरक्त वैष्णव परिषद, वृन्दावन का
अधयक्ष पद प्रदान किया | सत्य एवं निष्ठापूर्वक
धर्म एवं संस्कृति के रक्षार्थ आप जीवन के अंतिम समय तक प्रयासरत रहे | भक्ति जगत में आपका सुयश दैदीप्यमान सूर्य की भांति आलोकित होकर
अपनी कीर्ति पताका फहरा रहा है
आपका प्रकृतिप्रेम जीवन के संध्याकाल में पुन: आपको प्रियालाल के नित्य विहार स्थल श्रीहित अचल विहार में ले आया | जहाँ 10 सितम्बर 2003 तदनुसार भाद्रपद पूर्णिमा सम्वत् 2060 साँझीलीला के प्रथम दिवस ही अपने प्राण-पुष्प को लिये यह हितदासी श्रीजी की नित्य सेवा सन्निधि में सदा-सर्वदा के लिए प्रस्तुत हो गई |
आपका प्रकृतिप्रेम जीवन के संध्याकाल में पुन: आपको प्रियालाल के नित्य विहार स्थल श्रीहित अचल विहार में ले आया | जहाँ 10 सितम्बर 2003 तदनुसार भाद्रपद पूर्णिमा सम्वत् 2060 साँझीलीला के प्रथम दिवस ही अपने प्राण-पुष्प को लिये यह हितदासी श्रीजी की नित्य सेवा सन्निधि में सदा-सर्वदा के लिए प्रस्तुत हो गई |